Wednesday, May 26, 2010

ये हैं हमारे कमल किशोर सक्‍सेना


ये हैं मेरे अभिन्‍न मित्र और प्रेरक कमल किशोर सक्‍सेना। इन्‍हीं की प्रेरणा से मैने व्‍यावसायिक लेखन की दुनियां में कदम रखा था। पत्रकारिता भी इन्‍हीं के साथ रह कर सीखी। आजकल कमल जी पटना में हैं। एक दौर था जब पूर्वी उत्‍तर प्रदेश के व्‍यंग्‍य लेखकों में श्रद्धेय केपी सक्‍सेना के बाद अगर किसी व्‍यंग्‍य लेखक को पहचाना जाता था तो वह हमारे कमल किशोर सक्‍सेना ही थे। दैनिक जागरण में वह नियमित रूप से छपते थे। रेडियों के लिए इन्‍होंने तमाम 'हवामहल' लिखे। 'सस्‍ते दामाद की दुकान' उनकी चर्चित व्‍यंग्‍य रचना थी। वक्‍त के थपेड़ों ने इनकी सारी मेधा को दारू में डुबो दिया। अब नए सिरे से लिखना शुरू किया है। मेरी ओर से बहुत बहुत शुभकामनाएं। इन्‍होंने अपना एक ब्‍लाग भी अभी हाल ही में बनाया है।
मित्रों वक्‍त मिले तो कमल जी के ब्‍लाग कमल के किस्‍से डाट ब्‍लागस्‍पाट डाट काम पर अवश्‍य लॉगइन करें।

3 comments:

माधव( Madhav) said...

nice to khow himriwee

seema prakash said...

kamalbhai aapka hamari duniya mein swagat hai. aap abhi bhi bahut kuch is duniya ko de skte hain.
aayiye mil-jul kar kuch hanse aur phir sateek tippani to hai hi.

" पर स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को सबसे अधिक किसी ने समझा है तो हमारे एक परम मित्र ने, शादी के दिन साहब का ' मूत्र विसर्जन ' अनायास ही हो गया, अब जितने लोग उतनी बातें. तुरंत निहायत बेशर्मी से खड़े होकर बोले, "हें हें हें... ये है मेरा स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार "

FROM www.jan-sunwai.blogspot.com

Nitin Sabrangi said...

Shwagat!