Monday, January 25, 2010

एक वर्ष बाद

पूरे एक वर्ष बाद आज फिर लिखने बैठा हूं। जैसा कि मैने पहले ही कहा था कि किसी भी काम को शुरू करना बहुत मुश्किल होता है, और उसे अंजाम तक पहुंचाना और भी मुश्किल। वक्‍त के थपेड़े कहां से कहां उड़ा ले जाते हैं। ऐसा ही एक थपेड़ा मुझे भी लगा, अभी पिछले दिनों। तो ब्‍लाग पर कोई पोस्‍ट डालने का मौका ही नहीं लगा। जिंदगी को सहेजने में ही
पूरा एक साल बीत गया। आज मैं बहुत खुश हूं। पहली खुशी इस बात की कि एक दोस्‍त के एसएमएस ने नए सिरे से लिखने का हौसला दिया है। उसका एसएमएस था- सुना था जि़दगी इम्‍तहान लेती है, मगर ये साले इम्‍तहान तो जिदगी लेने पर लगे हैं।
जाने क्‍यूं इस एसएमएस ने एक बार फिर लिखने का हौसला दिया है। मुझे लगा कि इम्‍तहान तो चलते रहेंगे। जिंदगी इतनी आसान नहीं कि कोई इम्‍तहान इसे समेट ले जाए। रही दूसरी खुशी की बात तो वह यह कि आज मुझे अपना 21 साल पहले खोया हुआ एक दोस्‍त मेराज जैदी मिल गया। उसकी तस्‍वीर भी मिली जो इस पोस्‍ट के सा‍थ आपके सामने है। अपनी पिछली पोस्‍ट में मैने उसका जिक्र किया था कि उसने ही उन्‍नाव की कचहरी में एक वकील के यहां मुझे मुंशीगीरी का काम दिलाया था। उस समय वहां कचहरी में उससे अच्‍छा कोई मुंशी नहीं था। आज पता चला कि वह मुम्‍बई में है। उससे आज फोन पर बात भी हुई। टीवी सीरियल्‍स के लिए स्क्रिप्‍ट एवं डायलाग लिख रहा है।
मेराज से बात कर आज फिर मुझे वही शेर याद आ रहा है जिस शेर पर मैने अपनी पिछली पोस्‍ट को समाप्‍त किया था:- खुली छतों के दिये कब के बुझ गए होते, कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है।सच, हम सभी दोस्‍त खुली छतों के दिये जैसे ही तो थे। आज मेराज के रूप में एक खोया हुआ दिया मिला है जो मुम्‍बई में अपनी रोशनी बिखेर रहा है। मुझे उम्‍मीद ही नहीं भरोसा है कि हमारी दोस्‍ती के दिये जहां जहां भी होंगे, वहां रोशनी की कोई कमी नहीं होगी।
मित्रों, अगली पोस्‍ट में अपनी उसी कहानी पर वापस लौटूंगा जहां से मैं अचानक लापता हो गया था। कोशिश करूंगा कि हर सप्‍ताह कम से कम एक पोस्‍ट आपको जरूर पढ़ने को मिले।
नेट से मेराज को जो प्रोफाइल मिला है वह इस प्रकार है:-
MAIRAJ ZAIDI (born 22.11.1949 at Chaudhrana, Unnao)
Stage Artist & Dialogue Writer.
Stage Plays'Agra Baazar' directed by Habib Tanveer (68 shows ).'Charan Das Choor' directed by Habib Tanveer (8 shows).Contribution : He acted in these Plays.
'Curfew' adopted from Novel 'Shahar Mein Curfew' written by Vibhuti Narain Rao'Tamacha' 'Raj Darshan'Contribution : Direction, Screen Play, Acting & Dialogue Writing.
T.V. Serials 'Raja Ka Baaja' directed by Sayeed Mirza (27 episodes have been telecast on DD-I)'Farz' : Nimbus Productions (17 episodes.)'Chamatkaar' directed by Partho Ghosh. (6 episodes)'Rishtey' (Telecast on Sony)Contribution: Dialogue Writing.'Ghadar - 1857' based on The First war of Independence directed by Sanjay Khan.Contribution: Research Story, Screen Play & Dialogue Writing.


2 comments:

Nitin Sabrangi said...

कहीं पर्दा मुनासिब है कहीं कहना जरूरी है हर किसी के सामने दिल को खोला नहीं करते।
यकीनन हर कोई ऐसा नहंी होता। उम्मीद करते हैं पुरानी दोस्ती का यह बंधन अब बना ही रहेगा।

op saxena said...

THANKS NITIN